अंधेरी गली का राज़
संक्षिप्त परिचय:
दिल्ली की पुरानी बस्ती ‘शाहगंज’ की एक तंग गली, जहाँ दिन ढलते ही लोग निकलना बंद कर देते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि वहाँ रात के समय किसी की धीमी आवाज़ें सुनाई देती हैं और अचानक ठंडी हवा का झोंका लगता है। जब एक युवा महिला सामाजिक कार्यकर्ता उसी गली में संदिग्ध परिस्थिति में मृत पाई जाती है, तो यह मामला डिटेक्टिव शिवा और सोनिया के पास आता है। उनकी जाँच उन्हें एक ऐसे गिरोह और भ्रष्ट राजनीतिक षड्यंत्र की ओर ले जाती है, जिसमें अतीत और वर्तमान की परछाइयाँ एक-दूसरे से टकरा रही होती हैं।
पहला अध्याय – अंधेरी शुरुआत
रात के करीब 11 बजे, दिल्ली के शाहगंज मोहल्ले की गली नंबर 7 में एक चीख सुनाई दी। अगली सुबह, वहीं गली के कोने पर 29 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता रिद्धिमा अवस्थी का शव मिला। उसकी आँखें खुली थीं, और उसके हाथ में एक टूटी हुई चूड़ी थी। पुलिस ने इसे छेड़छाड़ और हत्या का मामला बताया, लेकिन कोई चश्मदीद सामने नहीं आया।
रिद्धिमा एक स्थानीय NGO के लिए काम करती थी और हाल ही में शाहगंज में नाबालिग बच्चों से श्रमिक शोषण से जुड़े मामलों की जाँच कर रही थी। उसके फोन से आख़िरी कॉल रात 10:42 पर हुई थी — नंबर अज्ञात था।
जाँच ठंडी पड़ती देख, रिद्धिमा की बहन निधि ने डिटेक्टिव शिवा से मदद की गुहार लगाई।
दूसरा अध्याय – परछाइयाँ और सुराग
शिवा और सोनिया जब शाहगंज पहुँचे, तो उन्होंने उस गली का निरीक्षण किया। वहाँ कोई CCTV कैमरा नहीं था। गली की दीवारों पर कुछ अजीब निशान थे — जले हुए काग़ज़, नीली स्याही से लिखे शब्द जो अब लगभग मिट चुके थे: “बंद करो उन्हें… वरना सब उजागर होगा।”
सोनिया ने रिद्धिमा की कॉल हिस्ट्री को खंगाला और पाया कि पिछले दो हफ्तों में एक ही नंबर से बार-बार कॉल आए थे, लेकिन वह नंबर किसी के नाम पर पंजीकृत नहीं था। ट्रैकिंग से पता चला कि वह सिम शाहगंज के ही एक पुराने मोबाइल स्टोर से खरीदी गई थी — बिना कोई पहचान पत्र दिए।
शिवा को रिद्धिमा की डायरी मिली जिसमें कुछ कोडवर्ड्स थे:
“L-17”, “गुप्त प्रवेश”, “शुद्ध मिलावट”, और “जिन्हें छुपाया गया है।”
शिवा को शक हुआ कि यह सिर्फ हत्या नहीं, बल्कि किसी बड़े नेटवर्क की परत का सिरा हो सकता है।
तीसरा अध्याय – शाहगंज का काला धंधा
NGO के अन्य कार्यकर्ताओं से बातचीत के दौरान पता चला कि रिद्धिमा ने शाहगंज की गली नंबर 7 के एक पुराने गोदाम में कुछ संदिग्ध गतिविधियाँ देखी थीं। वह जगह अब बंद पड़ी थी लेकिन रात को वहाँ ट्रक आते-जाते थे।
शिवा और सोनिया ने गोदाम की निगरानी की। एक रात उन्होंने देखा कि एक गाड़ी चुपचाप वहाँ रुकी और उसमें से कुछ छोटे बच्चे निकाले गए, जिनके चेहरों पर भय स्पष्ट था। गाड़ी तेजी से निकल गई।
शिवा ने तुरंत गुप्त रूप से गोदाम के अंदर प्रवेश किया। वहाँ उन्हें प्लास्टिक के ड्रम, कुछ बिस्तर, और दीवारों पर बच्चों के नाम लिखे मिले। वह एक अवैध बालश्रम और मानव तस्करी का केंद्र था।
सोनिया ने पड़ताल में पाया कि इस गोदाम को ‘L-17 Enterprises’ के नाम पर पंजीकृत किया गया था — वही ‘L-17’ जो रिद्धिमा की डायरी में दर्ज था।
चौथा अध्याय – राजनीति की परछाईं
‘L-17 Enterprises’ का मालिक था ‘विक्रम सैनी’ — एक स्थानीय नेता और पार्षद, जो सामाजिक कार्यों के लिए पुरस्कार पा चुका था। उसकी छवि एक ईमानदार राजनेता की थी। लेकिन जब शिवा ने कंपनी की वित्तीय जानकारी को ट्रैक किया, तो पता चला कि वह कंपनी हाल ही में सक्रिय हुई थी, और उसके खाते में कई संदिग्ध लेन-देन दर्ज थे।
शिवा को अब यह स्पष्ट हो गया था — विक्रम का मुखौटा सिर्फ दिखावा था। असली चेहरा एक मानव तस्करी रैकेट का मास्टरमाइंड था। रिद्धिमा उसकी सच्चाई तक पहुँच गई थी, इसलिए उसे चुप करा दिया गया।
एक गुप्त गवाह, जो कभी विक्रम के लिए काम करता था, ने शिवा को बताया कि रिद्धिमा को धमकी दी गई थी। “वो नहीं मानी, और आख़िरी रात उसे उसी गली में बुलाया गया जहाँ…”
पाँचवाँ अध्याय – न्याय का उजाला
शिवा और सोनिया ने पुलिस और बाल कल्याण अधिकारियों के साथ मिलकर गोदाम पर छापा मारा। वहाँ से 12 नाबालिग बच्चों को छुड़ाया गया और पूरा नेटवर्क सामने आया। विक्रम सैनी को गिरफ्तार किया गया। गली नंबर 7 की दीवार पर अब एक नया संदेश लिखा गया — “रिद्धिमा को न्याय मिला।”
शिवा ने मीडिया से कहा — “जब अंधेरे में भी कोई सच्चाई के लिए खड़ा होता है, तो सवेरा अवश्य आता है। यह मामला उन हज़ारों आवाज़ों की जीत है जो सुनाई नहीं देतीं लेकिन थमती नहीं हैं।”
सोनिया ने मुस्कुरा कर जोड़ा — “और कुछ गलीयाँ सिर्फ तंग नहीं होतीं, उनमें उम्मीद का रास्ता भी निकलता है।”
समाप्त