अधूरी चुप्पियाँ
संक्षिप्त भूमिका
दिल्ली के एक प्रतिष्ठित लॉ कॉलेज की युवा प्रोफेसर, अदिति जैन, एक शाम अचानक लापता हो जाती है।
पुलिस इसे “स्वेच्छा से गायब होने” का मामला बताकर फाइल बंद कर देती है।
लेकिन अदिति की छोटी बहन को उसके लैपटॉप से कुछ ऐसे ईमेल मिलते हैं,
जो एक ऐसे छात्र से जुड़े हैं जो दो साल पहले आत्महत्या कर चुका था।
जैसे-जैसे वह गहराई में जाती है, उसे एक षड्यंत्र, संस्थागत चुप्पी और एक सुनियोजित अपराध का सामना करना पड़ता है —
एक ऐसा रहस्य, जिसे कॉलेज की इमारत के हर पत्थर ने देखा, पर किसी ने कभी स्वीकार नहीं किया।
पहला दृश्य — शाम जो लौटी नहीं
दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध शारदा विधि संस्थान, देश के सबसे सम्मानित लॉ कॉलेजों में से एक था।
वर्ष 2024 के मार्च महीने की एक शांत शाम को, वहाँ की सबसे प्रतिभाशाली असिस्टेंट प्रोफेसर अदिति जैन,
कॉलेज की लाइब्रेरी से निकलकर अपने हॉस्टल की ओर निकलीं।
सीसीटीवी में उनकी आखिरी झलक कॉलेज परिसर के गेट पर 6:17 बजे की दर्ज हुई।
उसके बाद से उनका कोई पता नहीं चला।
अदिति का मोबाइल बंद था। हॉस्टल के कमरे में उनकी किताबें, बैग, और चश्मा — सब वैसा ही रखा था।
कॉलेज प्रशासन ने दो दिन बाद पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई।
लेकिन तीन हफ्तों की जांच के बाद, पुलिस ने निष्कर्ष दिया —
“कोई ज़बरदस्ती नहीं हुई। प्रोफेसर संभवतः मानसिक तनाव में थीं और कहीं चली गईं।”
मीडिया में एक-दो दिन हलचल रही,
फिर कहानी खत्म हो गई।
लेकिन उनके परिवार के लिए नहीं — विशेष रूप से नंदिता जैन के लिए नहीं,
जो उनकी छोटी बहन थी, और एक स्वतंत्र पत्रकार भी।
दूसरा दृश्य — एक अनपढ़ा इनबॉक्स
अदिति का लैपटॉप कॉलेज प्रशासन ने उनकी बहन को सौंप दिया था।
नंदिता ने पहले तो उसमें ज़रूरी कागज़ खोजने के लिए देखा,
लेकिन फिर उसका ध्यान एक फोल्डर पर गया —
“किशोर सिंह (L.L.B. – Batch 2021)”
वह नाम उसे परिचित लगा।
किशोर सिंह — कॉलेज का वही छात्र, जिसकी मृत्यु 2022 में छात्रावास की छत से कूदने के कारण हुई थी।
माना गया था कि यह आत्महत्या थी — “परीक्षा में असफलता” को कारण बताया गया।
परन्तु अदिति के मेलबॉक्स में जो ईमेल थे,
वे किशोर द्वारा लिखे गए अंतिम ईमेल थे — अदिति को।
“मैम, आप चाहें तो मुझे रोक सकती हैं। आपने वो सीसीटीवी फुटेज देखा है।
मुझे डर है कि अगर मैं यह सब बोल दूँ तो कोई मेरी बात नहीं मानेगा।
सर ने मुझसे कहा था कि अगर मैंने दुबारा शिकायत की तो मुझे कॉलेज से निकाल दिया जाएगा।
आप ही मेरी आखिरी उम्मीद हैं।”
नंदिता सन्न रह गई।
सर कौन थे?
कैसा फुटेज?
और शिकायत किस बात की?
तीसरा दृश्य — शारदा विधि संस्थान का मौन
नंदिता ने अपने प्रेस आईडी के माध्यम से कॉलेज में अनौपचारिक रूप से जांच शुरू की।
कुछ पुराने छात्रों से बात की, कुछ स्टाफ से इशारों में जानकारी लेने की कोशिश की।
तभी उसे मिला गौरव शर्मा, जो किशोर सिंह का बैचमेट था और अब एक जूनियर वकील था।
गौरव ने जो बताया, उसने सब उलट दिया।
“किशोर पढ़ाई में औसत था, लेकिन बहुत ज़िम्मेदार और ईमानदार लड़का था।
वो अक्सर कॉलेज के वरिष्ठ फैकल्टी सदस्य — विशेष रूप से डीन ऑफिस — द्वारा छात्रों पर किए जाने वाले दबाव और भेदभाव की शिकायत करता था।
एक बार उसने कहा था कि उसके पास ‘वीडियो फुटेज’ है जिसमें एक छात्र को कुछ असामान्य गतिविधियों में पकड़ा गया था,
और फैकल्टी उस पर कार्रवाई के बजाय उसे छुपाने में लगी थी।
कुछ दिनों बाद किशोर अचानक मानसिक रूप से परेशान दिखने लगा।
और फिर वो छत से कूद गया।”
नंदिता ने फिर अदिति के ईमेल्स को और गहराई से देखा।
एक ड्राफ्ट मिला — भेजा नहीं गया ईमेल —
जिसमें लिखा था:
“मैंने किशोर का फुटेज देखा है। यह साफ़ दिखाता है कि वह झूठ नहीं बोल रहा था।
लेकिन जिस आदमी का नाम इसमें सामने आएगा, वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है।
अगर मैंने यह रिपोर्ट प्रशासन को सौंपी, तो वे इसे मिटा देंगे।
मैं सोच रही हूँ, कहीं बाहर भेज दूँ?”
चौथा दृश्य — जो रिकॉर्ड में नहीं था
नंदिता को अब यह समझ आ गया था कि अदिति कुछ ऐसा जान चुकी थीं
जो कॉलेज की छवि और प्रशासन की प्रतिष्ठा के लिए खतरनाक था।
उसने दिल्ली के एक डिजिटल फॉरेंसिक विशेषज्ञ की मदद से अदिति की हार्ड ड्राइव का पूरा बैकअप निकलवाया।
वहाँ उसे एक वीडियो मिला — जिसका नाम था “C Block Staircase – 03.07.2022”
वीडियो में सीसीटीवी कैमरे से रिकॉर्ड की गई फुटेज थी —
जिसमें एक छात्र को किसी सीनियर स्टाफ के साथ एकांत में बातचीत करते देखा जा सकता था,
और फिर वह छात्र अचानक नीचे गिरता है।
वीडियो की तारीख किशोर की मृत्यु से एक दिन पहले की थी।
लेकिन सबसे चौंकाने वाला हिस्सा वीडियो के अंत में था —
जहाँ वह स्टाफ सदस्य सीसीटीवी कैमरे को अपनी जैकेट से ढक देता है।
वीडियो की गुणवत्ता थोड़ी धुंधली थी, पर चेहरा पहचानने योग्य था।
वह थे — डीन विजय त्रिपाठी, जो उस समय कॉलेज के सबसे वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी थे।
अंतिम दृश्य — मौन का मूल्य
नंदिता ने इस सारे सबूत को एक स्वतंत्र मीडिया पोर्टल को सौंपा —
“InsideCampus.org” — जो देशभर के शैक्षणिक संस्थानों में अनियमितताओं को उजागर करता था।
रिपोर्ट प्रकाशित हुई —
“मौत से पहले ईमेल” शीर्षक से।
देशभर में हलचल मच गई।
कॉलेज प्रशासन ने इसे “प्रचार का प्रयास” बताया।
परंतु दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई,
जिसके चलते डीन विजय त्रिपाठी को निलंबित किया गया,
और किशोर सिंह की मृत्यु की जांच फिर से खोली गई।
एक माह बाद — पुलिस ने आधिकारिक रूप से यह स्वीकार किया कि किशोर की मृत्यु में “संस्थागत दबाव और प्रत्यक्ष अनुशासनिक त्रुटियाँ” थीं।
अदिति जैन की गुमशुदगी अब केवल एक घटना नहीं रही —
वह एक संस्थागत अपराध का नतीजा बन गई।
उनका अब तक कोई सुराग नहीं मिला।
पर उनकी बहन ने उनकी डायरी, ईमेल्स और रिपोर्ट्स को मिलाकर एक पुस्तक लिखी:
“अधूरी चुप्पियाँ”
उसकी प्रस्तावना में लिखा था:
“वह आवाज़ जो नहीं बोलती,
वही अक्सर सबसे ज़्यादा सुनाई देती है।
मेरी बहन कहीं नहीं गई —
वह हर उस दीवार में है,
जहाँ चुप्पियाँ चिपकी हैं।”
समाप्त