अज्ञात कॉलर
संक्षिप्त भूमिका
मुंबई की व्यस्त और भागती-दौड़ती ज़िंदगी में हर रोज़ कोई न कोई घटना घटती है, लेकिन जब एक जाने-माने वकील की पत्नी की संदिग्ध मृत्यु होती है और उसके मोबाइल फोन पर अंतिम बार एक अनजान नंबर से बातचीत होती है, तब एक पूरी दुनिया शक के घेरे में आ जाती है। वरिष्ठ निरीक्षक अभय माथुर इस केस की तह में उतरते हैं, और जैसे-जैसे एक-एक परत खुलती है, सामने आता है एक ऐसा सच — जो किसी को स्वीकार नहीं होता।
पहला दृश्य — एक बंद अपार्टमेंट, एक खुला सवाल
मुंबई के जुहू इलाके में एक आलीशान अपार्टमेंट “पाम ग्रोव विला” के आठवें माले पर स्थित फ्लैट संख्या 802 में सुबह 8:30 बजे एक घरेलू नौकरानी पहुंचती है। फ्लैट का दरवाज़ा अंदर से बंद है, पर घंटी बजाने पर कोई उत्तर नहीं मिलता। नौकरानी हर रोज़ सुबह 8 बजे आती थी, लेकिन उस दिन कोई जवाब नहीं आया।
वह नीचे जाकर चौकीदार को बुलाती है। चौकीदार, जो श्रीकांत नामक एक बुज़ुर्ग व्यक्ति है, कुछ नहीं समझ पाता और दोनों मिलकर महिला के पति समर भाटिया को फोन करते हैं — जो उस वक्त कोर्ट में एक सुनवाई के लिए जा चुके थे।
समर की अनुमति से डुप्लीकेट चाबी से दरवाज़ा खोला जाता है। अंदर जो दिखता है, वह सभी को सन्न कर देता है —
अन्वी भाटिया, उम्र लगभग 34, बिस्तर पर मृत अवस्था में पड़ी है। चेहरे पर कोई घाव नहीं, शरीर पर कोई चोट नहीं, लेकिन बगल में पड़ी दवाइयों की शीशी और आधे भरे पानी के गिलास ने शक की जड़ें मजबूत कर दीं।
दूसरा दृश्य — वह जो कभी नहीं बोली
पुलिस पहुंचती है। वरिष्ठ निरीक्षक अभय माथुर केस अपने हाथ में लेते हैं।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट बताती है कि मौत रात करीब 2 बजे हुई।
कारण — नींद की गोलियों का ज़्यादा मात्रा में सेवन।
यह आत्महत्या प्रतीत होता है।
लेकिन अन्वी की बहन नेहा राय, जो शहर के दूसरे छोर पर रहती है, पुलिस को एक अहम जानकारी देती है:
“अन्वी आत्महत्या नहीं कर सकती। वह डरती थी गोलियों से। वह हमेशा कहती थी कि ‘नींद की दवा भी ज़हर जैसी होती है, बस फर्क इतना है कि वह धीरे-धीरे मारती है।'”
इस वाक्य ने अभय माथुर के कान खड़े कर दिए।
जब अन्वी का मोबाइल फोन फॉरेंसिक टीम द्वारा जांचा गया, तो उसकी आखिरी कॉल रात 1:42 बजे किसी अनजान नंबर से हुई थी — जो केवल 3 मिनट 9 सेकंड चली।
उस नंबर का कोई नाम नहीं, कोई रिकॉर्ड नहीं।
तीसरा दृश्य — पहचान से परे एक आवाज़
अभय ने उस नंबर की कॉल डिटेल निकलवाई।
नंबर प्रीपेड था,
पिछले तीन महीने से लगातार इस्तेमाल हो रहा था,
परंतु उसकी लोकेशन हर बार बदलती थी —
कभी बांद्रा, कभी अंधेरी, कभी पनवेल।
ऐसे नंबर को ट्रैक करना आसान नहीं था।
पर अभय को एक और सुराग मिला —
अन्वी ने कॉल के तुरंत बाद अपने मोबाइल में एक नोट टाइप किया था,
पर वह ‘डिलीट’ कर चुकी थी।
फोन रिकवरी टीम ने वह नोट रिकवर किया।
वह नोट एक अधूरी लाइन थी:
“तुम फिर से उसी बात पर आ गए… मैंने कहा था मैं…”
यही पर वह खत्म हो जाती थी।
अभय ने उस अधूरे वाक्य को कई बार पढ़ा।
यह कोई प्रेमी-प्रेमिका की बात नहीं लगती थी।
यह डर, दबाव और पुरानी बातों का संकेत दे रही थी।
चौथा दृश्य — अतीत, जो दफन नहीं होता
अन्वी की कॉलेज की एक पुरानी सहेली कृतिका सरीन, जो अब गोवा में रहती थी, पुलिस को फोन करके बताती है:
“अन्वी ने कुछ हफ्ते पहले मुझसे कहा था कि ‘कोई है जो मेरे पुराने जीवन को फिर से खंगाल रहा है। मुझे धमकी दे रहा है, और समर को यह सब नहीं पता चलना चाहिए।'”
अभय समझते हैं कि यह आत्महत्या नहीं, बल्कि किसी मानसिक प्रताड़ना की कहानी है,
जिसका अंत मौत पर हुआ।
अब पुलिस ने उन सभी नंबरों की जाँच शुरू की,
जो अन्वी से लगातार संपर्क में थे।
एक नाम निकलता है —
कविन मेहता, जो एक प्राइवेट कॉलेज में मनोविज्ञान पढ़ाता है।
कविन कभी अन्वी का सहपाठी था।
उन्होंने कॉलेज में एक साथ नाटक किए थे।
कुछ समय के लिए साथ भी देखे गए थे,
पर बाद में उनका संपर्क टूट गया था।
कविन को पूछताछ के लिए बुलाया गया।
पाँचवाँ दृश्य — जो कहा नहीं गया, वही असली कहानी थी
कविन पूछताछ के दौरान सामान्य लगता है।
वह कहता है कि “मैंने अन्वी से सालों से बात नहीं की।”
लेकिन जब उसके मोबाइल की जांच की जाती है,
तो पाया जाता है कि एक सेकंडरी फोन है —
जो उसने अपने नाम पर नहीं, बल्कि अपने छात्र के नाम पर खरीदा था।
वह वही नंबर था —
जो अन्वी को रात 1:42 बजे कॉल किया गया था।
कविन को जब इस बारे में बताया गया,
तो वह चुप हो गया।
उसने सिर झुकाकर कहा:
“मैंने कभी उसे नुकसान पहुँचाने का इरादा नहीं रखा।
मैं उससे माफ़ी मांगना चाहता था।
कॉलेज के दिनों में कुछ ऐसा हुआ था जो मेरी ग़लती थी।
मैं सिर्फ उसे ये कहना चाहता था कि मैं अब भी शर्मिंदा हूँ।
पर उसने फोन काट दिया।”
अभय ने सवाल किया:
“तुम्हारा सच बताने का वक्त रात के 2 बजे क्यों आया?”
कविन का जवाब था:
“क्योंकि मैं जानता था कि दिन में वह मेरी बात कभी नहीं सुनेगी।”
अंतिम दृश्य — जब सच भी संदिग्ध हो
कविन पर अन्वी को मानसिक प्रताड़ना देने और अप्रत्यक्ष रूप से आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का केस दर्ज हुआ।
परंतु अभय के लिए यह अब भी एक अधूरी कहानी थी।
क्योंकि फॉरेंसिक रिपोर्ट में यह भी लिखा था कि गोलियाँ अन्वी के शरीर में एक साथ नहीं गई थीं —
बल्कि दो खुराकों में —
जैसे किसी ने दूसरी बार ज़बरदस्ती दी हो।
समर भाटिया से भी दोबारा पूछताछ की गई।
उनके व्यवहार में अजीब शांति थी।
उन्होंने अन्वी के लिए कोई भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी।
यह बात पड़ोसियों ने भी नोट की थी।
पर कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला।
अभय माथुर की डायरी में केस बंद कर दिया गया।
पर उनकी निजी फाइल में केस अब भी ‘अनसुलझा’ की श्रेणी में था।
निष्कर्ष — कभी-कभी मौतें नहीं, रिश्ते अनुत्तरित रह जाते हैं
अन्वी की मौत किसी एक वजह से नहीं हुई थी।
वह थी —
पुराने घावों की चुप्पी,
आज के रिश्तों की दूरी,
और उस अज्ञात डर की लहर,
जो भीतर ही भीतर किसी को तोड़ देती है।
वरिष्ठ निरीक्षक अभय माथुर की रिपोर्ट में अंतिम पंक्ति लिखी गई:
“यह आत्महत्या थी —
लेकिन वह आवाज़ें जो उसके अंत तक गूँजती रहीं,
वह किसी एक इंसान की नहीं,
समाज के उस हिस्से की हैं —
जो माफ़ी भी देर से माँगता है और जवाबदेही भी नहीं लेता।”
समाप्त