अधूरी कॉल
संक्षिप्त भूमिका
मुंबई के अंधेरी वेस्ट इलाके में एक शांत सोसायटी ‘संध्या रेसिडेंसी’ की सातवीं मंज़िल पर एक महिला की लाश उसके फ्लैट में मिली। महिला का नाम था शालिनी भटनागर, उम्र 38 वर्ष, जो एक प्रतिष्ठित बीमा कंपनी में शाखा प्रबंधक के पद पर कार्यरत थी। पहली नजर में सब कुछ एक सामान्य आत्महत्या जैसा लगा, लेकिन जब जांच अधिकारी डीसीपी राघव मल्होत्रा इस मामले की तह में उतरते हैं, तो एक ऐसा जाल सामने आता है, जो रिश्तों, झूठ, डर और तकनीक के ताने-बाने में बुना गया है।
पहला दृश्य — चुप्पी की चीख
5 फरवरी की सुबह लगभग 9 बजे शालिनी के ऑफिस से फोन आया—वे जानना चाहते थे कि वह आज बिना सूचना के क्यों नहीं आई। कॉल का उत्तर नहीं मिला, ना ही मोबाइल चालू था।
शालिनी के पड़ोसी शांतनु मेहरा, जो उसी मंज़िल पर रहते थे, को ऑफिस से कॉल आया क्योंकि शालिनी ने उन्हें इमरजेंसी कॉन्टैक्ट बना रखा था। जब शांतनु ने दरवाज़ा खटखटाया, कोई जवाब नहीं आया। दरवाज़ा अंदर से बंद था, पर टीवी की धीमी आवाज़ अंदर से आ रही थी।
बिल्डिंग के सुपरवाइज़र को बुलाया गया और मुख्य कुंजी से दरवाज़ा खोला गया। अंदर का दृश्य बेहद खामोश और ठंडा था—शालिनी का शव बेड पर पड़ा था, आँखें खुली हुईं, मुंह से थोड़ी खून की धार बह चुकी थी। मेज़ पर दवा की खाली शीशी, एक अधूरी चाय की प्याली और मोबाइल रखा था—उसकी स्क्रीन टूटी हुई थी, मानो किसी ने ज़ोर से फेंका हो।
दूसरा दृश्य — जीवन जो बाहर से शांत था
शालिनी एक शांत, आत्मनिर्भर और समर्पित महिला के रूप में जानी जाती थीं। उनके ऑफिस के सहयोगी उन्हें ‘प्रोफेशनल’ और ‘सीधे-सपाट’ कहते थे।
डीसीपी राघव मल्होत्रा जब घटनास्थल पर पहुँचे, तो उन्होंने सबसे पहले कमरे की बनावट देखी—कुछ भी अस्तव्यस्त नहीं था, कोई जबरदस्ती घुसपैठ का संकेत नहीं। दवा की शीशी पर लिखा था: Zolpidem, जो अनिद्रा के लिए ली जाती है। परंतु पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में जो बात सामने आई, वो सब कुछ पलट देने वाली थी—शालिनी के शरीर में एक और रसायन था, जो नींद की गोली से कहीं ज़्यादा ताकतवर था—Triazolam, जिसे आसानी से उपलब्ध नहीं किया जा सकता।
यह अब एक आत्महत्या नहीं, एक संभावित हत्या बन चुका था।
तीसरा दृश्य — मोबाइल की अधूरी कहानी
फॉरेंसिक टीम ने शालिनी का मोबाइल पुनः चालू किया। स्क्रीन टूटी होने के बावजूद इंटरनल स्टोरेज से कुछ महत्वपूर्ण डेटा मिला—आखिरी कॉल रात 11:48 पर की गई थी, और वह कॉल रोहित नागपाल को की गई थी, जो एक पूर्व सहकर्मी था, और जिसे शालिनी के जीवन से जुड़े लोगों में कोई नहीं जानता था।
उस कॉल की अवधि थी 1 मिनट 3 सेकंड।
रोहित से संपर्क किया गया। वह एक अलग शहर, पुणे में रहता था, और उसने साफ़ इंकार किया कि उसने कोई संदिग्ध बात की हो।
“वो अचानक कॉल करके पूछने लगी — क्या तुमने अभी किसी को कुछ बताया? मैं चौंक गया। मैंने पूछा क्या हुआ? लेकिन उसने कॉल काट दी।”
डीसीपी राघव को बात जमी नहीं।
चौथा दृश्य — पास के, पर अनजाने चेहरे
शालिनी का सबसे करीबी रिश्ता था प्रिया मथुर, उनकी कॉलेज की दोस्त और वर्तमान में उसी सोसायटी में रहने वाली एक इंटीरियर डिज़ाइनर।
प्रिया से जब पूछताछ की गई, उसने बताया:
“शालिनी पिछले कुछ महीनों से परेशान थी। किसी के पीछे जासूसी कर रही थी। वो कहती थी कि कोई उसे ट्रैक कर रहा है… पर उसके पास कोई सबूत नहीं था।”
राघव ने जब पूछा कि उसने कभी किसी का नाम लिया?
“हाँ, एक नाम बार-बार आता था… ‘नीरज’। लेकिन मैं नहीं जानती कौन था वो।”
शालिनी के ईमेल में एक ड्राफ्ट मिला—जो कभी भेजा नहीं गया था। उसमें लिखा था:
“तुम जो कर रहे हो, वो केवल मेरी ज़िंदगी को नहीं, मेरी पहचान को भी खत्म कर रहा है। अगर मेरी चुप्पी एक दिन खत्म हो गई, तो सब सामने आ जाएगा।”
पाँचवां दृश्य — नीरज कौन था?
पुलिस जांच से सामने आया कि नीरज असल में एक प्राइवेट डिटेक्टिव था, जिसे शालिनी ने पिछले साल एक केस के लिए हायर किया था। उस केस का उद्देश्य था—उसके ऑफिस के एक वरिष्ठ अधिकारी की गुप्त रिकॉर्डिंग करवाना, जो प्रमोशन में भेदभाव करता था।
नीरज को ट्रैक किया गया। वह दिल्ली से गायब था, लेकिन उसके बैंक रिकॉर्ड्स से मालूम पड़ा कि हाल ही में एक बड़ी रकम शालिनी के खाते से उसके खाते में गई थी—जिसका कोई स्पष्ट कारण नहीं था।
जब नीरज को दिल्ली लौटने पर हिरासत में लिया गया, तो उसने बताया:
“मैंने जो जानकारी दी, वो शालिनी के लिए झटका थी। उसे पता चला कि उसके ही विभाग के एक और अधिकारी ने उसकी सारी पर्सनल जानकारियाँ—डॉक्टरी रिपोर्ट्स, सोशल मीडिया पासवर्ड्स, तकरीबन सब कुछ—हैक कर लिया था। और वो अधिकारी कोई और नहीं, अर्जुन भाटिया था—उसका बॉस।”
अंतिम दृश्य — आईने के पीछे का चेहरा
अर्जुन भाटिया, जो शालिनी के ऊपर कार्यरत था, बहुत प्रभावशाली और प्रतिष्ठित था। जब उससे पूछताछ हुई, उसने पहले इनकार किया। लेकिन जब शालिनी के लैपटॉप से रिमोट एक्सेस लॉग दिखाए गए, तो वह टूट गया।
“मैं सिर्फ़ उसे कंट्रोल करना चाहता था। वो सबके सामने बोलती थी, मुझसे बहस करती थी। मैं उसे नीचा दिखाना चाहता था… ताकि वो कभी आगे न बढ़ सके।”
उसने नीरज को फर्जी काम देकर हटवाया, और शालिनी को मानसिक दबाव में लाकर अकेला कर दिया।
परंतु 5 फरवरी की रात, शालिनी ने नीरज से मिलने की कोशिश की थी, और उसी दिन वह अर्जुन के खिलाफ सबूत इकट्ठा कर चुकी थी।
अर्जुन उसी रात उसके फ्लैट गया, और बातचीत में बहस हुई। उसने चुपके से उसकी चाय में ट्रायाज़ोलम मिला दिया।
उसने यह सब कुछ साफ़ कर दिया, और कहा—
“मैंने सोचा, वो बस बेहोश होगी। लेकिन… उसने पहले से ज़्यादा दवा ले रखी थी… मैं डर गया… और बाहर निकल आया।”
निष्कर्ष — अधूरी कॉल का उत्तर
शालिनी की मौत आत्महत्या नहीं थी।
वह एक क्रमबद्ध उत्पीड़न, अवैध निगरानी, और गुप्त मनोवैज्ञानिक हिंसा का परिणाम थी।
अर्जुन भाटिया को हत्या, साज़िश और डिजिटल अपराध की धाराओं में गिरफ़्तार किया गया।
डीसीपी राघव ने केस फ़ाइल में लिखा:
“जब दुनिया आधुनिक हो जाती है, तो अपराध परंपरागत नहीं रहते।
अब हत्या गोली से नहीं, स्क्रीन, डेटा और मनोवैज्ञानिक शिकंजे से होती है।
शालिनी मरने से पहले लड़ रही थी — और उसकी सबसे अंतिम कॉल, उसका सबसे सच्चा बयान थी।”
समाप्त