तारों के नीचे एक वादा
संक्षिप्त विवरण:
यह कहानी दो युवा दिलों — आरोही और मानव — की है, जो जीवन के दो अलग रास्तों से निकलकर एक ऐसी राह पर मिलते हैं जहाँ दोस्ती, प्रेम, आत्म-विश्वास और सपनों की उड़ान एक-दूसरे से टकराते हैं। ‘तारों के नीचे एक वादा’ एक सौम्य, उल्लासपूर्ण, और भावनात्मक रूप से गहराई लिए हुए कहानी है जो बताती है कि सच्चा प्रेम हमेशा मुश्किलों के पार रास्ता बना ही लेता है। यह एक ऐसी प्रेमकथा है जहाँ हर मोड़ पर जीवन की सरलता, कॉलेज की मासूमियत और युवा मन की बेचैनियाँ गुंथी हुई हैं — पूरी तरह से सकारात्मक, ऊर्जा से भरपूर और अंत तक मुस्कान छोड़ जाने वाली।
पहला अध्याय – पहली मुलाकात
राजस्थान के जयपुर शहर में स्थित ‘सूर्यमणि इंटर कॉलेज’ में बारहवीं कक्षा की शुरुआत हो चुकी थी। नए छात्र, नई किताबें, नया उत्साह — सब कुछ हवा में घुला हुआ था।
आरोही रावल, जोधपुर से आई थी। बड़ी-बड़ी आँखें, चेहरे पर आत्मविश्वास, और हर बात में साफ़गोई। वह पढ़ाई में तेज़ थी, लेकिन उतनी ही बातूनी भी। किसी से दोस्ती करने में ज़रा भी समय नहीं लगाती।
दूसरी ओर, मानव त्यागी — जयपुर का ही रहने वाला। शांत, गम्भीर, विज्ञान में रुचि रखने वाला लड़का, जिसे लोग ‘बुद्धू’ नहीं, ‘प्रोफेसर’ कहकर चिढ़ाते थे। लेकिन वह इन बातों की परवाह नहीं करता। उसकी एक ही चाहत थी — आईआईटी में प्रवेश पाना और पिता की फैक्ट्री को एक दिन टेक्नोलॉजी से जोड़ देना।
पहली बार जब आरोही क्लास में आई, तो आख़िरी सीट खाली थी — और वहाँ मानव बैठा था।
“क्या यहाँ बैठ सकती हूँ?” उसने पूछा।
मानव ने केवल सिर हिलाया।
“ओके, बात नहीं करते क्या?” आरोही ने मुस्कुराते हुए पूछा।
“पढ़ाई का समय है,” मानव ने कहा।
“ओह! अच्छा प्रोफेसर बाबू,” वह हँसी।
और यही हँसी उन दोनों के बीच की पहली डोर बन गई।
दूसरा अध्याय – दोस्ती की मिठास
कुछ ही दिनों में आरोही और मानव की दोस्ती गहराने लगी। आरोही मानव को ज़िंदगी के हल्के पल जीना सिखा रही थी, जबकि मानव आरोही को पढ़ाई में केन्द्रित रहना सिखा रहा था।
कॉलेज की लाइब्रेरी में साथ पढ़ना, कैंटीन में एक ही समोसे को बाँटना, साथ कॉम्पटीशन में भाग लेना — ये सब अब उनकी दिनचर्या बन चुके थे।
एक शाम कॉलेज के संगीत कार्यक्रम में आरोही ने गाना गाया — “तेरा मेरा रिश्ता पुराना…” और आँखें बार-बार मानव की ओर गईं।
मानव ने पहली बार मुस्कराते हुए ताली बजाई — दिल से।
उस दिन के बाद आरोही ने अपनी डायरी में लिखा —
“मैं जानती हूँ, कुछ तो है, जो इस दोस्ती से ज़्यादा है।”
तीसरा अध्याय – परीक्षा और प्रस्ताव
साल का अंत आ रहा था। प्री-बोर्ड की तैयारी चल रही थी। मानव रात-रात भर पढ़ाई करता और आरोही को फ़ोन पर समझाता। आरोही को गणित से डर लगता था, लेकिन मानव की वजह से वह अब सवालों से नहीं भागती थी।
एक दिन परीक्षा के ठीक पहले, कॉलेज में “ओपन माइक डे” रखा गया। आरोही ने मंच पर आकर अपनी बात रखी:
“मैंने यहाँ पढ़ाई सीखी, दोस्ती सीखी, और सबसे बड़ी बात — एक ऐसा इंसान पाया जिसने मेरी ज़िंदगी को अर्थ दिया।”
फिर वह मंच से नीचे उतरी और सबके सामने मानव का हाथ पकड़कर बोली —
“मैं जानती हूँ कि तू बहुत व्यस्त है अपने सपनों को लेकर, पर क्या उसमें मुझे भी थोड़ी जगह मिल सकती है?”
पूरा कॉलेज चुप। मानव कुछ पल तक चुप रहा, फिर धीरे से बोला —
“अगर तू होगी तो मेरे सपने पूरे नहीं, पूरे से भी ज़्यादा होंगे।”
ताली, सीटी और हँसी — जैसे कॉलेज में फूल खिल गए हों।
चौथा अध्याय – दूरी का इम्तिहान
बारहवीं की परीक्षा के बाद दोनों अपने-अपने शहर चले गए। मानव कोटा गया आईआईटी की कोचिंग के लिए और आरोही दिल्ली विश्वविद्यालय।
अब बातें पहले जैसी नहीं रहीं। समय कम, व्यस्तताएँ ज़्यादा। पर दिल में जगह अभी भी वही थी।
कुछ महीने बाद, एक शाम आरोही को मानव का मैसेज मिला —
“कभी-कभी लगता है, ये दूरी हमें बदल देगी…”
आरोही ने बिना देर किए जवाब दिया —
“अगर दिल सच्चा हो, तो दूरी रास्ता नहीं रोकती, बस प्यार की गहराई को मापती है।”
वे तय करते हैं — हर महीने की पहली तारीख़ को रात 10 बजे एक-दूसरे को वीडियो कॉल करेंगे, चाहे जैसी भी परिस्थितियाँ हों।
पाँचवाँ अध्याय – तारों के नीचे वादा
समय बीतता गया। तीन साल गुज़र गए। अब आरोही पत्रकारिता की पढ़ाई कर रही थी, और मानव अंतिम वर्ष में था।
एक दिन मानव ने बताया — “मेरी नौकरी लग गई है, पुणे में। पर मैं कुछ करना चाहता हूँ, उससे पहले…”
“क्या?” आरोही ने पूछा।
“तू कहाँ है आज रात?”
“जोधपुर आई हूँ दो दिन के लिए।”
“तब मिल मुझे वहीं, जहाँ हमने पहली बार तारों को साथ देखा था — कॉलेज की छत पर।”
आरोही आश्चर्य में पड़ गई, लेकिन वहाँ पहुँची। और वहाँ — सारी छत को दीयों से सजाया गया था, बीच में एक मेज़ थी, और मानव खड़ा था हाथ में एक छोटा-सा डिब्बा लिए।
“जब हम अलग हुए थे, तब भी मेरा सपना तू थी। अब जब मैं अपने पैरों पर खड़ा हूँ, तो तू ही वो ज़मीन है। क्या तू ज़िंदगीभर के लिए मेरी दोस्त, साथी और प्रेमिका बनना चाहेगी?”
आरोही की आँखें छलक आईं।
“तारों के नीचे जो वादा तूने तब किया था, आज मैं पूरा करती हूँ — हाँ।”
समाप्त
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