पेड़ों की गुप्त सभा
(एक किशोर की पर्यावरण से दोस्ती और जंगल के रहस्य को समझने की कहानी)
संक्षिप्त विवरण:
यह कहानी है यश देवताले की — एक 13 वर्षीय किशोर, जो मोबाइल, गेम्स और टीवी से उकताया हुआ एकांतप्रिय बालक है। गर्मी की छुट्टियों में जब उसके माता-पिता उसे एक दूरदराज के पहाड़ी गाँव रावंधा में उसके दादा-दादी के पास भेजते हैं, तब वह अनमना-सा वहाँ पहुँचता है। लेकिन वहाँ उसे एक रहस्यमयी जंगल मिलता है, जहाँ हर पेड़ रात के समय आपस में कुछ फुसफुसाता है। यश एक दिन इन पेड़ों की “गुप्त सभा” में शामिल हो जाता है, और उसके बाद जो होता है, वह उसकी सोच, जीवन और आत्म-विश्वास को हमेशा के लिए बदल देता है।
यह कहानी न केवल किशोरों के लिए प्रकृति से जुड़ने की प्रेरणा है, बल्कि यह दिखाती है कि कभी-कभी सबसे अच्छा शिक्षक मोबाइल नहीं, मिट्टी होती है।
पहला भाग – जब छुट्टियाँ बोझ लगने लगीं
यश देवताले एक महानगर में रहने वाला सामान्य किशोर था।
स्कूल, ट्यूशन, मोबाइल गेम्स और शाम को टीवी — यही उसकी दिनचर्या थी।
उसे गर्मी की छुट्टियाँ किसी सज़ा से कम नहीं लगती थीं, क्योंकि छुट्टियों का मतलब था —
“माता-पिता का आदेश – ‘फोन बंद कर, बाहर खेलो’।”
इस बार जब उसके पापा ने कहा —
“तुझे इस बार रावंधा भेज रहे हैं, दादाजी के पास।”
तो यश का चेहरा उतर गया।
“गाँव में न इंटरनेट, न टीवी, न दोस्तों के मैसेज… वहाँ क्या करूंगा?”
लेकिन आदेश आदेश होता है।
दूसरा भाग – पहली मुलाक़ात पहाड़ों से
रावंधा एक छोटा-सा पहाड़ी गाँव था।
नीले आसमान के नीचे हरियाली से लिपटी धरती, और हवा में मिट्टी की खुशबू।
यश पहली रात ही ऊब गया।
“यहाँ तो बोरियत की सीमा ही नहीं!”
लेकिन उसके दादा जी, जो अब भी हर सुबह 5 बजे उठकर खेतों में जाते थे, बोले —
“अगर मन से देखे तो हर चीज़ में कहानी है बेटा। इन पेड़ों से पूछ, तेरी बोरियत उड़ जाएगी।”
यश ने मुस्करा कर बात टाल दी।
तीसरा भाग – रहस्यमयी जंगल का बुलावा
दूसरे दिन, यश दादी के कहने पर बकरी के लिए पत्ते तोड़ने पास के जंगल में गया।
वहाँ के पेड़ अजीब थे —
बहुत लंबे, बहुत घने, और हर एक की छाल पर कुछ प्रतीक खुदे हुए थे — जैसे कोई गुप्त भाषा।
रात को जब वह वापस लौटा, तो उसे सपने में पेड़ों की आवाज़ें सुनाई दीं —
“आ जा, तू जिसे देख नहीं सका, उसे सुनने का हक़ रखता है।”
तीसरी रात उसने देखा —
पूरा जंगल जैसे झिलमिल कर रहा हो।
हवा में संगीत-सी गूंज थी, और एक विशाल पीपल का वृक्ष एक सिंहासन जैसा लग रहा था।
चौथा भाग – पेड़ों की गुप्त सभा
यश छिपकर उस वृक्ष के पास गया।
उसने देखा — सभी पेड़ अपनी शाखाओं से इशारे कर रहे हैं, जैसे आपस में संवाद कर रहे हों।
हर पेड़ ने अपनी शाखा से एक पत्ती नीचे गिराई —
हर पत्ती पर एक शब्द था।
यश ने उन्हें जोड़ कर पढ़ा —
“हम वो हैं जिनसे तुम सांस लेते हो। लेकिन अब हमारी सांसें थम रही हैं।”
वह चौंक गया।
क्या पेड़ बोल सकते हैं?
वह झट से खड़ा हुआ —
“मैं आपकी बात सबको बताऊंगा! मैं आपसे दोस्ती करना चाहता हूँ।”
पीपल ने अपनी सबसे लंबी शाखा उसकी ओर झुकाई और कहा —
“तो सुनो, तुम्हारा नाम अब ‘वनमित्र’ होगा। हमारे संदेशवाहक।”
पाँचवाँ भाग – ‘वनमित्र’ की यात्रा
अगली सुबह यश उठा, तो उसे पेड़ों से बात करने की तीव्र इच्छा होने लगी।
उसने गाँव के स्कूल के बच्चों को इकट्ठा किया और उन्हें पेड़ों के बारे में बताया।
बच्चों ने कहा —
“पेड़ तो हम हर दिन देखते हैं, लेकिन उनसे बात कैसे करें?”
यश ने कहा —
“पेड़ बात करते हैं, पर हमें सुनना सीखना पड़ता है।”
उसने एक ‘वनमित्र क्लब’ बनाया —
हर दिन एक पेड़ को गले लगाओ, उसकी छाल को छुओ, और पत्तों की आवाज़ सुनो।
धीरे-धीरे गाँव में बच्चों की सोच बदलने लगी।
अब वे पेड़ों को केवल ईंधन या लकड़ी नहीं, दोस्त की तरह देखने लगे।
छठा भाग – जब पेड़ बोले, ‘शुक्रिया’
अंतिम सप्ताह में यश ने पूरे गाँव में एक अभियान चलाया —
‘हर घर एक पौधा’
बच्चों ने अपने घरों में गमले बनाए, और स्कूल में एक बागीचा शुरू किया।
एक दिन, जब यश अकेला जंगल में गया, तो पीपल की शाखा ने फिर उसे छुआ —
“तू जा रहा है, लेकिन तेरा बीज यहाँ रह गया है। हमें अब अकेलापन नहीं लगेगा।”
यश की आँखें नम थीं।
वह बोला —
“मैं हर साल वापस आऊँगा। और तब तक मेरा संदेश फैलता रहेगा।”
अंतिम भाग – शहर में भी वृक्ष उगते हैं
जब वह शहर लौटा, तो उसने स्कूल में ‘वनमित्र क्लब’ शुरू किया।
अब वह सप्ताह में एक दिन सभी छात्रों को पार्क ले जाता, और पेड़ों के पास बैठकर उन्हें कहानियाँ सुनाता —
कभी गुलमोहर की, कभी बरगद की।
कुछ महीने बाद, उसके स्कूल को ‘सर्वश्रेष्ठ हरित विद्यालय’ का सम्मान मिला।
उसकी डायरी में आज भी एक पंक्ति सबसे ऊपर लिखी है —
“पेड़ हमारे जैसे नहीं बोलते, लेकिन जब वे चुप होते हैं, तब वे सबसे ज़्यादा कह रहे होते हैं।”
समाप्त
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