भूतिया खिड़की
संक्षेप
उत्तर प्रदेश के एक पुराने और खंडहर हो चुके हवेली में स्थित एक खिड़की वर्षों से बंद है। गांववालों का मानना है कि जो भी उस खिड़की को खोलता है, वह कभी दोबारा नहीं दिखता। जब शहर से एक युवा शोधकर्ता “रवि” अपनी डॉक्टरेट के लिए उस हवेली पर शोध करने आता है, तो वह इस खिड़की के रहस्य में उलझ जाता है। उसकी जिज्ञासा उसे एक ऐसे भयानक रहस्य तक ले जाती है, जहाँ मृत्यु से भी डरावनी चीज़ें उसका इंतजार कर रही थीं।
कहानी
रवि एक होशियार और जिज्ञासु शोधकर्ता था, जो उत्तर प्रदेश के एक शांत और पुराने कस्बे धरमपुर में स्थित एक रहस्यमयी हवेली पर शोध करने आया था। इस हवेली का नाम था – शिवनिवास हवेली। यह हवेली अब खंडहर में बदल चुकी थी, उसकी दीवारें जर्जर हो चुकी थीं, और जगह-जगह काई लगी हुई थी। लेकिन जो चीज़ इस हवेली को सबसे अधिक रहस्यमयी बनाती थी, वह थी – वह पुरानी लकड़ी की खिड़की जो हमेशा बंद रहती थी।
गांववालों का कहना था कि रात के समय वह खिड़की अपने आप खुलती है और कोई अदृश्य साया उस खिड़की से झाँकता है। वे बताते थे कि दशकों पहले, जब किसी ने उस खिड़की को खोलने की कोशिश की, तो वह व्यक्ति कभी लौटकर नहीं आया। गांव का बुज़ुर्ग “नत्थू बाबा” ने रवि को चेताया,
“बेटा, उस खिड़की के पास मत जाना। वह खिड़की नहीं, काल का दरवाज़ा है।”
पर रवि मानने वालों में से नहीं था। वह इतिहास और रहस्य की गहराइयों में उतरना चाहता था।
पहली रात
रवि ने हवेली में ही डेरा डाल लिया। उसने टॉर्च, कैमरा, और नोटबुक साथ रखी थी। हवेली के अंदर जाते ही उसे एक अजीब सी सिहरन महसूस हुई। दीवारों पर उकेरे गए पुराने चित्र, धुंधली ध्वनियाँ और सन्नाटा, सब कुछ भय पैदा करता था।
रात के ठीक 12 बजे, वह खिड़की खड़खड़ाई।
रवि का शरीर कांप गया, लेकिन उसने कैमरा उठाया और खिड़की की ओर बढ़ा। खिड़की पूरी तरह बंद थी। लेकिन उसकी दरारों से ठंडी हवा अंदर आ रही थी। उसने कैमरे से तस्वीरें खींचीं और उन तस्वीरों को देखने लगा। तस्वीरों में, खिड़की के पास एक सफेद परछाई स्पष्ट रूप से दिख रही थी, जबकि वहाँ वास्तव में कुछ भी नहीं था।
दूसरी रात – साया
अगली रात रवि ने खिड़की के सामने एक कैमरा लगाया जो रातभर रिकॉर्ड करता रहा। सुबह उसने जब वीडियो देखा, तो उस पर रोंगटे खड़े हो गए। वीडियो में रात के 2:17 पर खिड़की खुद-ब-खुद खुलती है, और एक सफ़ेद झुलसी हुई औरत बाहर झाँकती है। उसके होंठ सिल दिए गए थे और आँखों से खून बह रहा था।
रवि को भरोसा नहीं हुआ कि यह सच था या कोई भ्रम। उसने तुरंत कैमरा और वीडियो लेकर स्थानीय पुजारी “त्रिपाठी जी” के पास गया।
त्रिपाठी जी ने वीडियो देखकर गहरी सांस ली और कहा,
“यह कोई आत्मा नहीं, यह प्रेतिनी है। उसका क्रोध बुझा नहीं है। जब तक कोई उसका श्राप नहीं तोड़ेगा, वह हर उस व्यक्ति को मार डालेगी जो उसकी खिड़की की ओर देखेगा।”
प्रेतिनी का इतिहास
त्रिपाठी जी ने रवि को बताया कि 1872 में इस हवेली में ठाकुर विजयसिंह रहा करते थे। उनकी पत्नी “रत्ना” अत्यंत सुंदर और शांत स्वभाव की स्त्री थीं। ठाकुर को शक था कि रत्ना का किसी नौकर से संबंध है। एक रात क्रोध में उन्होंने रत्ना को उस खिड़की में बंद कर दिया, उसके होंठ सी दिए और उसे ज़िंदा जला दिया।
रत्ना की मौत के बाद हवेली में अजीब घटनाएँ होने लगीं। कई नौकर-चाकर गायब हो गए। ठाकुर की मृत्यु खिड़की के ठीक नीचे एक ऊँचाई से गिरकर हुई, जैसे किसी ने उन्हें खींचकर नीचे फेंक दिया हो। तभी से खिड़की को बंद कर दिया गया।
खुलते दरवाज़े
रवि ने तय किया कि वह इस रहस्य का अंत करेगा। उसने त्रिपाठी जी से विधिपूर्वक पूजा करवाकर खिड़की खोलने की योजना बनाई। अगली रात, चारों तरफ हवन-कुंड सजाया गया, मन्त्रों का जाप शुरू हुआ।
रात के ठीक 12 बजे जैसे ही खिड़की खुली, रत्ना की आत्मा पूरे कमरे में घूमने लगी। उसकी आँखों से आग बरस रही थी, वह चिल्ला रही थी लेकिन आवाज़ नहीं निकल रही थी। उसने त्रिपाठी जी को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन मन्त्रों के प्रभाव से वह पीछे हट गई।
रवि ने उसके पैरों में गिरकर कहा,
“तुम्हारा अपराधी मैं नहीं, वो ठाकुर था। तुम मुक्त हो जाओ, तुम्हारा श्राप अब शांति का अधिकारी है।”
कुछ क्षणों की शांति के बाद, रत्ना की आत्मा एक प्रकाश में बदल गई और आसमान की ओर उड़ गई। हवेली की दीवारें हिलने लगीं, जैसे आत्मा के जाते ही हवेली की आत्मा भी चली गई।
अंतिम रहस्य
रवि ने राहत की सांस ली। हवेली अब शांत हो चुकी थी। गांव वालों ने वर्षों बाद हवेली के सामने दिया जलाया। लेकिन…
दो दिन बाद जब रवि अपनी रिपोर्ट लेकर दिल्ली लौटा, तो उसके कैमरे की एक आखिरी वीडियो क्लिप अपने आप चलने लगी। उसमें रत्ना की आत्मा खिड़की से झाँकती हुई कहती है –
“मैं मुक्त नहीं हूँ… मैं इंतज़ार कर रही हूँ…”
रवि की आँखें चौड़ी हो गईं। खिड़की फिर से बंद हो चुकी थी… लेकिन उसकी आत्मा… अब रवि के साथ दिल्ली पहुँच चुकी थी।
हर खिड़की रोशनी नहीं लाती। कुछ खिड़कियाँ सिर्फ अंधेरा लाती हैं, ऐसा अंधेरा जो आत्मा तक को खा जाता है।
समाप्त
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