चौथी तस्वीर
संक्षेप
दिल्ली के एक पुराने कोठीनुमा अपार्टमेंट में रहने वाला एक फोटोग्राफर ‘विवेक’ एक दिन एक पुराना कैमरा खरीदता है। पर वह कैमरा सामान्य नहीं होता। हर बार जब वह उससे तस्वीर खींचता है, तस्वीर में तीन लोग तो वही होते हैं, लेकिन चौथी आकृति अलग होती है—धुंधली, काली और कभी-कभी आंखें गड़ा कर कैमरे की ओर देखती हुई। वह चौथी तस्वीर धीरे-धीरे हकीकत बनती जाती है। लेकिन जब विवेक को उस चौथे चेहरे की असली पहचान पता चलती है, तो हर तस्वीर मौत की दस्तक बन जाती है।
पुराने कैमरे की खोज
विवेक एक स्वतंत्र फोटोग्राफर था, जो पुरानी चीजों का शौकीन था—कैमरे, घड़ियाँ, रिकॉर्ड प्लेयर, और सबसे ज्यादा… पुरानी यादें कैद करने वाले यंत्र। एक दिन दिल्ली के दरियागंज की पुरानी किताबों और एंटीक बाज़ार में उसे एक बूढ़ा दुकानदार मिला, जिसकी दुकान में जंग लगे कैमरों का ढेर था।
“ये कैमरा मत लेना बाबू,” दुकानदार ने कहा, जब विवेक की नज़र एक काले चमड़े के बॉक्स में बंद एक पुरानी Leica पर पड़ी।
“क्यों?” विवेक ने मुस्कुराकर पूछा।
“उस कैमरे से जो तस्वीर खींची जाती है, उसमें कुछ ज़्यादा ही कैद होता है।”
विवेक ने हँसते हुए कैमरा खरीद लिया। उसे रहस्यों पर यकीन नहीं था… पर अब वह नहीं जानता था कि उसने सिर्फ एक कैमरा नहीं खरीदा… उसने एक आत्मा को मुक्त किया था।
पहली तस्वीर
घर आकर विवेक ने अपने दोस्त सिद्धार्थ, रिया, और कृतिका के साथ तस्वीरें खींचनी शुरू कीं। जब तस्वीरें धुल कर आईं, तो तीनों को वह पसंद आईं… लेकिन हर तस्वीर में एक चौथा चेहरा मौजूद था — धुंधला, अस्पष्ट, लेकिन पूरी तरह से नज़रें कैमरे पर गड़ाई हुई।
विवेक ने सोचा कोई छाया होगी या कैमरे की तकनीकी खराबी। लेकिन तस्वीरें स्कैन करने पर पता चला कि वह छवि हर फ्रेम में अलग-अलग मुद्रा में है — कभी बहुत पास, कभी पीछे खड़ी, कभी खिड़की के बाहर।
रिया ने मज़ाक में कहा, “शायद कोई भूत भी पोज़ कर रहा है।”
पर उस रात कृतिका की खिड़की अपने आप खुल गई… और सुबह उसका चेहरा नील पड़ चुका था। वह ज़िंदा थी, लेकिन सदमे में। उसकी आँखें बस एक ही दिशा में देखती रहीं — और वो थी दीवार पर टंगी वही तस्वीर।
दूसरी तस्वीर
विवेक ने दो दिन बाद खुद की एक सेल्फ़-पोर्ट्रेट ली, अकेले… लेकिन जब तस्वीर आई, उसमें वह अकेला नहीं था।
उसके पीछे वही चेहरा — इस बार थोड़ा और साफ़… आँखें जलती हुई, होंठों पर एक टेढ़ी मुस्कान, और उसकी उंगलियाँ जैसे विवेक के कंधे को छूने ही वाली थीं।
डर विवेक में धीरे-धीरे समाने लगा। उसने तय किया कि अब वह यह कैमरा नहीं रखेगा।
पर जब उसने कैमरा स्टोर में लौटाने की कोशिश की, वहाँ वह बूढ़ा दुकानदार मौजूद ही नहीं था। दुकान की जगह अब एक बंद पड़ा गोडाउन था, जिस पर जंग खाया ताला लटका था।
पुराने फोटो एल्बम का रहस्य
सिद्धार्थ ने सुझाव दिया कि कैमरे के इतिहास का पता लगाना चाहिए। वे दोनों कैमरे की सीरियल नंबर से उसकी उत्पत्ति खोजने निकले।
पुराने रिकॉर्ड्स के अनुसार, कैमरा पहले मॉडल टाउन में रहने वाले एक फोटोग्राफर श्रीनाथ सहाय का था, जो 1963 में रहस्यमय तरीके से मरा था। उसकी लाश एक अजीब स्थिति में मिली थी — आँखें फटी हुईं, कैमरा हाथ में, और दीवार पर दर्जन भर तस्वीरें टंगी थीं — हर तस्वीर में एक चौथा चेहरा था।
विवेक और सिद्धार्थ ने श्रीनाथ की कोठी का पता लगाया। कोठी अब जर्जर हो चुकी थी, लेकिन अंदर एक कमरा अभी भी वैसा का वैसा था। वहाँ दीवारों पर वही तस्वीरें थीं, और हर एक में वही काली परछाईं।
कमरे में एक डायरी मिली —
“जो तस्वीर में है, वो आत्मा में समा जाता है… चौथी तस्वीर पूरी होते ही मृत्यु दरवाज़ा खोलती है…”
चौथी तस्वीर पूरी
रिया अब भी उस तस्वीर से डरी हुई थी। लेकिन विवेक ने उसे आश्वस्त किया कि सब भ्रम है। उसने सोचा एक आखिरी फोटोशूट से सब खत्म कर देगा।
उसने तीन अन्य दोस्तों को बुलाया और कैमरा सेट किया। यह फोटोशूट “कॉन्सेप्ट शूट” था — एक डाइनिंग टेबल, चार कुर्सियाँ, और कैमरा सेट।
तस्वीर खिंच गई।
अगले दिन जब तस्वीर धुल कर आई, विवेक की साँसें थम गईं। इस बार चौथा चेहरा सबसे आगे था।
तस्वीर में वह परछाईं पूरी तरह स्पष्ट थी। और वह मुस्कुरा रही थी।
उसी शाम रिया की मौत हो गई — रहस्यमय दिल का दौरा। पोस्टमार्टम में कोई कारण नहीं मिला।
कैमरा जीवित हो उठा
अब विवेक उस कैमरे को नष्ट करना चाहता था। उसने उसे हथौड़े से तोड़ना चाहा, पर हर चोट के साथ उसके सिर में तेज़ दर्द होता रहा। और अंत में कैमरा वैसा का वैसा रहा… पर विवेक की आँखों से खून बहने लगा।
दीवारों पर अचानक खींची गई तस्वीरें उभरने लगीं — हर तस्वीर में चौथा चेहरा अब विवेक बन गया था।
अंतिम दृश्य
एक महीने बाद, एक कॉलेज स्टूडेंट ने OLX पर एक पुराना कैमरा खरीदा — “Vintage Leica, Rare German Make.” कैमरे के साथ एक छोटी सी नोटबुक मिली जिसमें सिर्फ तीन शब्द लिखे थे:
“मत खींच… चौथी पूरी है।”
लेकिन वह स्टूडेंट हँसा, और उसी शाम उसने अपने तीन दोस्तों के साथ तस्वीर ली…
अब एक नई चौथी तस्वीर बन चुकी थी।
**
कुछ कैमरे सिर्फ तस्वीरें नहीं लेते, वे आत्माओं की गिनती पूरी करते हैं। चौथी तस्वीर कभी खाली नहीं रहती। और जब वो पूरी हो जाए — जीवन की नेगेटिव रोल में आग लग जाती है।
समाप्त
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