खून की गूंज
एक रहस्यमय हत्या, लापता सुराग, और एक पुलिस इंस्पेक्टर जो अतीत के साए में उलझा हुआ है — इस क्राइम कहानी में हर मोड़ एक नई सच्चाई खोलता है।
भाग 1 – सुनसान हवेली
राजधानी से करीब चालीस किलोमीटर दूर स्थित था एक पुराना क़स्बा — मोहनपुर। वहां के बाहरी इलाके में थी एक विशाल हवेली — ठाकुर हवेली, जो अब वीरान पड़ी थी। आसपास के लोग कहते थे, रात को उस हवेली से कभी-कभी अजीब-सी आवाज़ें आती हैं। कोई कहता, आत्माएं भटकती हैं, तो कोई मानता कि अंदर कोई रह रहा है चोरी-छिपे।
लेकिन एक दिन सुबह, जब नज़दीक खेतों में काम कर रहे मज़दूरों ने देखा कि हवेली के बाहर एक आदमी की लाश पड़ी है — खून से लथपथ, चेहरे पर डर और हैरानी दोनों की परछाईं। शव की जेब से एक पुराना बिजनेस कार्ड मिला — ‘दीपक मल्होत्रा, रियल एस्टेट एजेंट’। कोई नहीं जानता था ये आदमी कौन है, न वो यहां क्यों आया था। मामला पहुंचा पुलिस तक।
भाग 2 – इंस्पेक्टर विक्रांत
मामले की जांच के लिए नियुक्त किया गया इंस्पेक्टर विक्रांत चौहान — तेज़, अनुभवी और अतीत में झुलसा हुआ एक पुलिस अफसर। विक्रांत की आँखों में गुस्से से ज़्यादा कुछ छुपा हुआ था — कोई दर्द, कोई अधूरी कहानी।
जब विक्रांत ने शव की जांच की, उसे लगा ये कोई साधारण हत्या नहीं थी। शरीर पर केवल एक ही चाकू का वार था — बिलकुल दिल के ऊपर, नफरत से नहीं बल्कि सटीक निशाने से किया गया वार। ऐसा कोई कर सकता था जो या तो पेशेवर हो या कोई बहुत ही व्यक्तिगत कारण से।
हवेली की तलाशी में विक्रांत को मिला एक पुराना रजिस्टर — जिस पर लिखा था, “वापसी की तारीख: 5 जुलाई” — यही तारीख थी जब दीपक की हत्या हुई थी। साथ ही एक कोने में थे दो जले हुए कागज़ — एक टुकड़ा पढ़ने लायक था:
“अगर राज़ बाहर निकला, तो मैं सब कुछ जला दूँगा, तुम्हें भी।”
विक्रांत को लगने लगा ये केस उससे कहीं ज़्यादा बड़ा है जितना दिखाई दे रहा है।
भाग 3 – अतीत की परछाईं
जांच आगे बढ़ी तो सामने आए दो नाम — अजय वर्मा और संध्या रावल। अजय एक पुराने रियल एस्टेट घोटाले में शामिल था, और संध्या कभी दीपक की पार्टनर थी, अब लापता। विक्रांत को शक था कि हवेली के ज़मीन सौदे में कुछ बड़ा खेल हुआ है।
मोहनपुर के पुराने रिकॉर्ड से पता चला कि ठाकुर हवेली को एक दशक पहले दीपक ने बेहद सस्ते दाम पर खरीदा था, और उसमें कई अवैध सौदे किए थे। हवेली के नीचे तहखाना भी था, जिसे गांव वाले ‘मौत का कमरा’ कहते थे — जहां से कई साल पहले एक लड़की की चीखें सुनी गई थीं।
जैसे ही विक्रांत तहखाने में उतरा, वहाँ अंधेरे में उसे मिला एक छोटा सा संदूक — जिसमें थे पुराने कागजात, खून से सनी एक लड़की की चूड़ियाँ और एक गोल्डन लॉकेट, जिस पर लिखा था “एस.आर.”।
भाग 4 – गुमशुदा संध्या
एस.आर. यानी संध्या रावल। विक्रांत ने तुरंत संध्या की तलाश शुरू की। शहर के एक पुराने होटल में मिली एक फर्जी आईडी पर बुकिंग — नाम था “रेश्मा सैनी”, तस्वीर संध्या की ही थी।
कई दिनों की निगरानी के बाद आखिरकार संध्या पकड़ी गई। पहले तो उसने कुछ नहीं कहा, पर जब लॉकेट और तहखाने की तस्वीरें दिखाई गईं, वो टूट गई।
उसने जो कहानी बताई, उसने सबको हिला कर रख दिया।
संध्या ने बताया कि दस साल पहले दीपक ने हवेली में ज़बरदस्ती ज़मीन सौदे के बहाने उसे बुलाया और फिर एक शराब पार्टी के दौरान उसके साथ दुर्व्यवहार किया। उसी रात, संध्या की बहन स्नेहा वहां आई और दीपक से भिड़ गई। स्नेहा को मारकर दीपक ने तहखाने में दफना दिया।
संध्या डर के मारे भाग गई और नाम बदलकर रहने लगी। पर जैसे-जैसे दीपक अमीर होता गया, उसकी आँखों में लालच बढ़ता गया। अब वो हवेली को होटल में बदलने का प्लान कर रहा था — और संध्या को डर था कि खुदाई में उसकी बहन की लाश सामने आ जाएगी।
इसलिए उसने अजय की मदद ली — जो दीपक का पुराना दुश्मन था। दोनों ने मिलकर दीपक को हवेली बुलाया और वही पर उसे मार दिया।
भाग 5 – न्याय और साज़िश
इंस्पेक्टर विक्रांत के लिए ये केस किसी व्यक्तिगत यात्रा जैसा था। उसकी बहन भी सालों पहले ऐसे ही एक ज़मीन सौदे में लापता हुई थी, और अब उसे यकीन था कि उस केस और इस मामले में कोई न कोई कड़ी ज़रूर है।
अजय वर्मा फरार हो चुका था। संध्या जेल में थी, पर उसे मानसिक आघात के आधार पर न्यायिक मानसिक अस्पताल भेजा गया।
तहखाने की खुदाई में मिली स्नेहा की लाश और बाकी सबूतों के आधार पर केस को बंद किया गया। हवेली को सरकारी ज़ब्त में ले लिया गया।
पर विक्रांत अब भी शांत नहीं था — उसकी आँखों में अब भी वही दर्द था। वो जानता था कि इस दुनिया में सज़ा अक्सर उस तक नहीं पहुँचती जिसने शुरुआत की होती है — बस जो पकड़ा गया, वही दोषी बनता है।
अंतिम पंक्तियाँ
कभी-कभी इंसाफ मिल जाता है, मगर न्याय का चेहरा अधूरा रह जाता है। मोहनपुर की हवेली अब भी खामोश है, पर उसकी दीवारों में वो चीखें अब भी गूंजती हैं।
समाप्त
📚 All Stories • 📖 eBooks