नीली डायरी
एक बुज़ुर्ग महिला की रहस्यमय मौत, उसके कमरे में छुपी एक नीली डायरी, और एक पुलिस अफसर की ज़िंदगी में उलझते गए रहस्य — इस कहानी में अपराध की तहों में छुपे हैं ऐसे सच, जो कभी उजाले में नहीं आने चाहिए थे।
भाग 1 – रहस्यमय मौत
लखनऊ के पुराने चौक इलाके में एक कोठी थी — ‘मिश्रा निवास’। वहां पिछले 30 वर्षों से अकेली रह रही थीं 78 वर्षीया विधवा महिला — सरला मिश्रा। इलाके में सब उन्हें आदर से ‘सरला दी’ कहकर बुलाते थे। न कभी कोई विवाद, न कोई परेशानी।
4 नवंबर की सुबह नौकरानी शांति जब आई, तो उसने देखा कि कोठी का मुख्य दरवाज़ा खुला हुआ था, जो आमतौर पर बंद रहता था। अंदर जाकर देखा, तो सरला दी के कमरे का दरवाज़ा भी खुला था — और वहां, बिस्तर के पास फर्श पर उनकी लाश पड़ी थी।
चेहरे पर कोई डर नहीं था, पर हाथ की अंगुलियाँ मुड़ी हुई थीं और गले के पास जलने के हल्के निशान थे। कमरे में कोई तोड़फोड़ नहीं थी, ज़ेवर मौजूद थे, और अलमारी बंद। पहली नज़र में ये मौत नेचुरल लगती थी, मगर शांति ने पुलिस को एक बात कही —
“कल रात कोई अजनबी आदमी दरवाज़े के बाहर देखा गया था… लंबा-सा, और उसने टोपी पहनी थी।”
मामला पहुंचा चौक थाना, और इंस्पेक्टर प्रभाकर तिवारी को सौंपा गया।
भाग 2 – बंद कमरा, खुला सच
इंस्पेक्टर प्रभाकर ने सरला दी के कमरे की गहनता से जांच की। सब कुछ व्यवस्थित था, मगर एक बात खटकी — सिरहाने के पीछे दीवार में हल्की सी खरोंच थी, जैसे कुछ हटाया गया हो। जब दीवार को खटखटाया गया, तो अंदर से खोखली आवाज़ आई।
एक छुपा हुआ कैविटी निकला, और उसके अंदर थी एक नीली रंग की पुरानी डायरी, जिस पर लिखा था –
“मेरी ज़िंदगी के वो राज़, जिन्हें मैंने कभी किसी से नहीं कहा।”
प्रभाकर ने डायरी को थाने में मंगाया और पढ़ना शुरू किया। उसके पहले ही पन्ने पर लिखा था —
“जो मुझे मारने आएगा, उसे मैं पहले से जानती हूं। लेकिन मैं भी उसे खाली हाथ नहीं जाने दूंगी।”
भाग 3 – अतीत के धब्बे
डायरी की शुरुआत 1978 से थी। सरला मिश्रा ने उसमें अपना अतीत दर्ज किया था — कैसे वो एक कॉलेज की प्रोफेसर थीं, और कैसे उनका प्रेम संबंध एक व्यापारी से हुआ — नाम था हरीश चड्ढा।
हरीश शादीशुदा था, लेकिन सरला को उसने धोखे में रखा। जब सरला गर्भवती हुई, तो उसने हरीश से शादी का दबाव डाला। हरीश ने मना किया और कहा, “अगर किसी को पता चला, तो तुम जिंदा नहीं बचोगी।”
कुछ महीनों बाद सरला का गर्भपात हो गया — ज़हर की वजह से। उसने शक जताया कि उसे खाने में कुछ मिलाया गया था। हरीश गायब हो गया, और कुछ सालों बाद एक आगजनी की घटना में मारा गया — लेकिन सरला को हमेशा शक रहा कि हरीश मरा नहीं था।
डायरी में एक नाम और सामने आया — कमलेश चड्ढा — हरीश का बेटा, जो अब दिल्ली में एक नामी बिल्डर था। सरला ने लिखा था कि कमलेश ही उसका पीछा कर रहा था, क्योंकि उसे डर था कि कहीं डायरी के ज़रिये उसकी सच्चाई बाहर न आ जाए।
भाग 4 – असली निशान
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आया कि मौत दिल का दौरा नहीं, बल्कि दम घुटने से हुई थी — मगर किसी ज़हरीले धुएं की वजह से। चेहरे पर जलन का जो निशान था, वो किसी खास प्रकार के रसायन का प्रभाव था — जो सामान्य आग या धुएं से नहीं होता।
इस जांच के दौरान इंस्पेक्टर प्रभाकर को एक और बात पता चली — कि सरला दी कुछ महीने पहले एक पत्रकार से मिल रही थीं — कविता त्रिपाठी नाम की रिपोर्टर, जो महिला अपराधों पर लिखती थी।
कविता ने बताया —
“सरला दी मुझे अपनी डायरी छापने देना चाहती थीं, लेकिन उन्हें किसी से धमकी मिल रही थी। उन्होंने कहा था कि अगर कुछ हो जाए, तो डायरी पुलिस को जरूर दें।”
प्रभाकर ने तय किया — अब मामला एक सामान्य हत्या नहीं, बल्कि एक प्री-प्लान्ड मर्डर का बन चुका है।
भाग 5 – नकली पहचान
कोठी में उस रात की सीसीटीवी फुटेज को जब पास की दुकानों से जुटाया गया, तो उसमें एक संदिग्ध व्यक्ति देखा गया — लंबा, टोपी में, और चेहरा नकाब से ढका। उसकी चाल को पहचानने की कोशिश की गई, और फॉरेंसिक तकनीक से अनुमान लगाया गया कि उसकी उम्र करीब 50 से 55 के बीच है।
कमलेश चड्ढा की उम्र 54 साल थी।
दिल्ली से जांच के लिए एक टीम भेजी गई, और जब कमलेश को पूछताछ में बुलाया गया, तो वो पहले झिझका। लेकिन जब प्रभाकर ने डायरी का ज़िक्र किया, उसकी आंखों में हलचल साफ़ दिखाई दी।
कुछ घंटे की पूछताछ में, जब उसके मोबाइल की लोकेशन और कार की ट्रैवेल हिस्ट्री सामने रखी गई, तो उसने कहा —
“मैं बस डर रहा था कि पुरानी बात बाहर न आ जाए। पर मैंने नहीं मारा।”
प्रभाकर को यकीन था कि कमलेश सीधा हत्यारा नहीं था — लेकिन उसने किसी को भेजा ज़रूर था।
भाग 6 – अंतिम सुराग
डायरी के आखिरी हिस्से में एक और नाम सामने आया — विजय राजदान।
सरला ने लिखा था —
“हरीश और विजय दोनों मेरे पीछे पड़े थे। हरीश ने धोखा दिया, विजय ने चुपचाप सहा। पर मुझे हमेशा लगता रहा, विजय मुझसे कुछ छुपा रहा है। शायद हरीश की मौत का राज़ भी वही जानता है।”
विजय अब एक रिटायर्ड स्कूल प्रिंसिपल था, जो कानपुर में रहता था। जब प्रभाकर वहां पहुंचा, तो विजय की हालत खराब थी — बीमार, कमजोर और मानसिक रूप से थका हुआ।
पूछने पर विजय ने कहा —
“मैंने हरीश को जलते नहीं देखा था… मैंने उसे जिंदा भागते देखा था। पर मैंने चुप्पी रखी, क्योंकि सरला ने कहा था — सच उसे कभी चैन नहीं लेने देगा। अब वही सच मुझे खा रहा है।“
प्रभाकर ने फैसला लिया कि सच्चाई को सामने लाना ज़रूरी है — चाहे कितनी भी देर हो जाए।
भाग 7 – हत्या का सच
फोन रिकॉर्ड और लोकेशन डेटा से साफ़ हुआ कि कमलेश ने एक ‘प्राइवेट ऑपरेटर’ से संपर्क किया था — एक ऐसा आदमी जो सबूत मिटाने का काम करता था।
उसका नाम था शेखर बाजपेयी, और वो पहले कई केसों में वांछित रह चुका था। उसे मध्यप्रदेश से गिरफ्तार किया गया। पूछताछ में उसने कबूल किया —
“हां, मुझे पैसे मिले थे — उस बूढ़ी औरत को चुप करने के लिए। मैंने रसायन से बना धुआं कमरे में छोड़ा और बाहर से दरवाज़ा बंद कर दिया। 5 मिनट में सब ख़त्म हो गया।”
कमलेश और शेखर दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया।
कविता त्रिपाठी ने सरला की डायरी को प्रकाशित कराया — “नीली डायरी” नाम से — और उसमें दर्ज हर राज़ अब सार्वजनिक हो चुका था।
अंतिम पंक्तियाँ
अपराध कभी खुद को नहीं छुपा सकता, जब तक उसके पन्नों में सच लिखा होता है। सरला मिश्रा की मौत ने कई ज़िंदगियों के नकाब उतार दिए — और उस नीली डायरी ने बता दिया कि कभी-कभी सबसे बड़ा हथियार कागज़ होता है, बंदूक नहीं।
समाप्त
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