टूटी उम्मीदें
एक पारिवारिक बिखराव की मार्मिक दास्तान
राजधानी के एक प्रतिष्ठित मोहल्ले “सावित्री नगर” में रहने वाला मिश्रा परिवार वर्षों से सम्मानित और प्रतिष्ठित माना जाता था। परिवार के मुखिया सत्यव्रत मिश्रा, एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर थे, जिनका समाज में बड़ा नाम था। उनकी पत्नी सुरेखा मिश्रा, एक सीधी-सादी मगर आत्मसम्मान से भरी स्त्री थीं। दोनों के तीन बच्चे थे – आरव, निहारिका और छोटा बेटा यश।
बाहर से देखने पर यह परिवार आदर्श लगता था – शिक्षा, सभ्यता और प्रेम की मिसाल। लेकिन भीतर ही भीतर, रिश्तों की दीवारों में दरारें उभर रही थीं, जिनकी आवाज़ धीरे-धीरे चीखों में बदलने वाली थी।
परिवार की सतह के नीचे
सत्यव्रत हमेशा अनुशासन के पक्षधर रहे थे। बच्चों की परवरिश में उन्होंने कठोर नियमों का पालन किया, जबकि सुरेखा ने हमेशा भावनात्मक पक्ष को थामा। आरव, जो अब एक मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर था, बचपन से ही पिता की सख्ती से घुटता आया था। निहारिका, जिसने पत्रकारिता की पढ़ाई की थी, हमेशा एक स्वतंत्र सोच की पक्षधर रही, जो परिवार की परंपराओं से टकराती थी।
सबसे छोटा यश, कॉलेज में पढ़ रहा था और अपने दोस्तों की चकाचौंध भरी दुनिया में खोता जा रहा था। वह हर बात में विद्रोह करता, यहाँ तक कि माँ की बात भी उसे बोझ लगती।
आरव की दूरी
आरव ने दिल्ली में एक फ्लैट ले लिया था। पत्नी साक्षी के साथ वह अब वहीँ रहता था। घर वालों से उसका संपर्क बस ज़रूरत भर का रह गया था। सुरेखा हर त्योहार पर उम्मीद करतीं कि आरव आएगा, लेकिन हर बार एक मैसेज आ जाता – “माँ, काम बहुत है, इस बार नहीं आ पाऊँगा।”
सत्यव्रत चुप रहते, मगर उनकी आँखों में उभरते क्लेश को सुरेखा साफ पढ़ सकती थीं। निहारिका भी अब पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने स्वतंत्र विचारों के कारण अलग-थलग पड़ गई थी।
निहारिका का संघर्ष
निहारिका एक न्यूज़ पोर्टल में वरिष्ठ संवाददाता थी। उसने हमेशा महिलाओं के मुद्दों को आवाज़ दी थी। मगर उसके कार्यालय में ही उसका वरिष्ठ संपादक उसके विचारों को दबाना चाहता था।
जब निहारिका ने एक उच्च अधिकारी पर यौन उत्पीड़न का खुलासा किया, तो वह स्वयं निशाने पर आ गई। उसे नौकरी से निलंबित कर दिया गया। वह घर लौटी, टूट चुकी थी। मगर पिता ने उसकी बातों पर भरोसा नहीं किया – “इतनी तेज़ चलने की कोशिश करोगी, तो गिरना तो तय है।”
सुरेखा ने चुपचाप बेटी को अपने गले लगा लिया। मगर उनके अपने आँसू भी सूख चुके थे।
यश की गिरती उड़ान
यश कॉलेज छोड़ चुका था। उसका झुकाव नशे और गैरकानूनी गतिविधियों की ओर बढ़ने लगा था। जब एक रात पुलिस उसे चरस के साथ पकड़कर लाई, तब सत्यव्रत का माथा झुक गया। मोहल्ले में बातें होने लगीं – “मिश्रा जी के लड़के का हाल देखा?”
सत्यव्रत अब बहुत चुप रहने लगे थे। वे अब किसी बहस में नहीं पड़ते, अख़बार से परहेज़ करने लगे थे। सुरेखा टूटती जा रही थीं, लेकिन एक माँ का दिल हर बच्चे को बचाने की कोशिश करता रहा।
अतीत की परछाइयाँ
एक दिन सुरेखा ने अपने पुराने ट्रंक से कुछ खत निकाले – आरव ने बचपन में लिखे थे, पिता के लिए, माँ के लिए, बहन के लिए। उन खतों में मासूम सपने थे, एक स्नेहिल भविष्य की कामनाएँ। उन्होंने वो खत सत्यव्रत को दिखाए – “देखिए, यह वही आरव है… जो अब पराया लगता है।”
सत्यव्रत की आँखें नम हो गईं। उन्होंने कांपते हाथों से आरव को फ़ोन किया – “बेटा, इस रविवार को घर आओ। कुछ कहना है।”
आरव आया… मगर अपने साथ एक बड़ा निर्णय लेकर। उसने कहा – “मैं इस घर को बेच देना चाहता हूँ, माँ-पापा। यह जगह अब बोझ लगती है।”
सत्यव्रत हतप्रभ रह गए। सुरेखा की साँसें जैसे थम गईं।
विस्फोट और बिखराव
उस रात पहली बार सत्यव्रत चीखे – “तू इस घर को बेचने आया है या अपने संस्कारों को गिरवी रखने?”
आरव ने कहा – “पापा, संस्कारों की बात मत कीजिए, आपने हमें सिर्फ डर सिखाया है, प्यार नहीं।”
निहारिका रो पड़ी – “इस घर को बेचोगे, तो मेरे बचपन को कहाँ रखोगे?”
यश चुप था, मगर पहली बार उसकी आँखें पश्चात्ताप से भरी थीं।
अंतिम विद्रोह
सत्यव्रत ने निर्णय लिया – “यह घर नहीं बिकेगा। अगर तुम्हें दूर जाना है, जाओ। मगर माँ और मैं यहीं रहेंगे। एक ईंट भी हिलाई तो कानून से लड़ूँगा।”
आरव चला गया। निहारिका ने नौकरी छोड़ दी और एक स्वयंसेवी संगठन से जुड़ गई। यश नशामुक्ति केंद्र गया, माँ की मिन्नतों पर।
समय के साथ
छह महीने बीते। घर में अब शांति थी, मगर सन्नाटा गहरा था। एक दिन आरव बिना बताए घर आया। उसके साथ उसकी बेटी थी – नन्हीं सिया।
सिया ने दादी से कहा – “दादी, आपके जैसे खाने का स्वाद कहीं नहीं मिलता।”
सुरेखा ने उसे सीने से लगा लिया। आरव ने धीमे से कहा – “माँ, क्या मैं कुछ दिनों के लिए यहाँ रह सकता हूँ?”
सत्यव्रत ने आँखें उठाईं। कुछ नहीं कहा। मगर एक कुर्सी खिसका दी – “बैठो।”
रिश्तों की दरारें वक़्त से भरती हैं, मगर उस वक़्त को देने का साहस हर किसी में नहीं होता। यह कहानी एक ऐसे ही साहस की है – टूटे हुए सपनों को फिर से जोड़ने की।
समाप्त
📚 All Stories • 📖 eBooks