कर्म-चक्र: अग्निवीर
संक्षिप्त झलक, कर्म-चक्र: जब एक प्राचीन गणना प्रणाली अचानक पूरे देश की किस्मत पर प्रभाव डालने लगती है — जहां हर व्यक्ति का भविष्य पूर्व निर्धारित दिखने लगता है और संयोग, चुनाव, परिश्रम सब व्यर्थ होने लगते हैं — तब देश के भाग्य को बचाने का युद्ध जन्म लेता है। यह कहानी है उस काली व्यवस्था के विरुद्ध जो मनुष्य को उसकी कर्मशक्ति से अलग कर रही है। जब भविष्य एक अटल पंक्ति की तरह लिखा जाने लगे, तब केवल एक ही नायक उसे जलाकर मिटा सकता है — यह है कर्म-चक्र: अग्निवीर।
कहानी
प्रारंभ — भाग्य का गणित
वाराणसी के पास एक गांव में एक सामान्य किसान लक्ष्मण तिवारी को सपना आता है — जिसमें कोई कहता है:
“कल सूरज उगने से पहले तू मर जाएगा।”
वह उठता है, डरता है, भागता है, गाँव छोड़ देता है… पर अगले दिन, सुबह चार बजे, उसकी बस एक खाई में गिरती है — और वह मारा जाता है।
यह कोई अकेली घटना नहीं थी।
देशभर में हज़ारों लोग अचानक अपने भाग्य से परिचित होने लगे।
कोई कहता — “मुझे मालूम है, मैं मंत्री बनूँगा।”
कोई छात्र कहता — “मेरी मेहनत से कुछ नहीं होगा, मेरा गणना भाग्य कमज़ोर है।”
लोग निर्णय लेना बंद करने लगे, परीक्षा देना छोड़ने लगे, विवाह और व्यवसाय छोड़ भाग्यसूत्र देखने लगे।
एक शब्द लोकप्रिय होने लगा —
“कर्म-चक्र सूत्र” — जो हर व्यक्ति के जन्म-स्थान, जन्म-समय, डीएनए, और पूर्वजों के आधार पर भविष्य की ‘निश्चित गणना’ करता था।
इस सूत्र की मदद से अपराधी पहले ही जान लेते कि वे जेल नहीं जाएँगे। मंत्री जान जाते कि उन्हें कोई नहीं हटा सकता। लोग भविष्यवाणी को ही ‘सत्य’ मानने लगे।
उदय — भाग्यबोध संस्थान
दिल्ली में एक गुप्त संस्थान खुला — “भाग्यबोध संस्थान” — जहाँ केवल अमीर और शक्तिशाली लोग अपने और दूसरों के ‘कर्म-चक्र सूत्र’ को प्राप्त कर सकते थे।
यह सूत्र तय करता था — कौन क्या बनेगा, कौन किससे विवाह करेगा, कौन कब मरेगा।
धीरे-धीरे, पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था टूटने लगी।
एक प्रकार का सामाजिक ‘कास्टिंग सिस्टम’ बन गया — लेकिन यह जाति या धर्म पर नहीं, कर्मसूत्र पर आधारित था।
अग्निवीर की चेतना में अशांति
हिमालय में ध्यानस्थ अग्निवीर को एक पिघलता हुआ चक्र दिखाई दिया। उसकी साधना टूट गई।
उसने देखा कि देश के हर कोने में एक अदृश्य धुआँ फैल रहा है — जो लोगों की स्वतंत्रता को जला रहा है।
यह धुआँ एक मानसिक ग्रंथि बन चुका था, जिसे लोग ‘पूर्वलिखित’ कहकर पूजने लगे थे।
पर अग्निवीर को स्मरण हुआ —
“अगर भविष्य निश्चित हो,
तो संघर्ष व्यर्थ होता है।
पर जहाँ संघर्ष है, वहाँ कोई गणना पूर्ण नहीं।”
‘कर्मविरोधी’ — सूत्र का स्वामी
इस पूरे षड्यंत्र के पीछे था — एक प्राचीन मुनि का वंशज, ‘कर्मविरोधी’, जिसने स्वयं वैदिक गणना का उपयोग कर के देवताओं से विद्वेष पाला था।
उसका विश्वास था कि मनुष्य स्वतंत्र नहीं, केवल ‘संभावनाओं की चाल’ भर है।
उसने हज़ारों वर्षों तक ‘शून्यकलन’ और ‘नक्षत्र गणना’ के आधार पर एक ‘चिप-संयंत्र’ बनाया था — जो मनुष्य की सोच को भविष्य के अनुसार ढाल सकता था।
वह अब भारत के सभी नागरिकों के जन्मदर्शन, शिक्षा, खून और विचारों को ‘डेटा’ की तरह जमा कर, उन्हें कर्म-निर्धारित भविष्य की ओर धकेल रहा था।
तीन केंद्र — जहां भविष्य लिखा जा रहा था
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श्रीहरिकोटा — गणना शून्य यंत्र
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दिल्ली — भाग्यबोध मुख्य सर्वर
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नासिक — कर्मविरोधी की वैदिक प्रयोगशाला
पहला अभियान — श्रीहरिकोटा
यहाँ कर्मविरोधी ने एक ‘भविष्यकाल गणना यंत्र’ स्थापित किया था, जिससे करोड़ों लोगों के निर्णयों की दिशा निर्धारित हो रही थी।
अग्निवीर ने वहाँ अग्निचक्र मंत्र का प्रयोग किया — जिससे यंत्र की सारी गणना को गर्मी में पिघलाकर मिटा दिया।
जब यंत्र का तंत्र बिखरा, वहाँ काम कर रहे वैज्ञानिकों की आँखें खुल गईं — और उन्होंने पहली बार महसूस किया कि उनके भीतर निर्णय लेने की ताकत है।
दूसरा अभियान — दिल्ली का सर्वर
यह सर्वर उन चिप्स को संचालित करता था, जो अब बच्चों के स्कूल, युवाओं के मोबाइल, और नेताओं के कानों में लगे थे।
अग्निवीर को यहाँ प्रवेश करने के लिए अपने ही ‘कर्म-चक्र’ को बुझाना पड़ा।
क्योंकि जैसे ही वह भीतर पहुँचा, एक वाक्य लिखा दिखाई दिया —
“तेरा भविष्य भी निर्धारित है — तू असफल होगा।”
पर अग्निवीर ने उत्तर दिया —
“मैं भविष्य नहीं, वर्तमान हूँ — और आग का कोई भविष्य नहीं होता, वह केवल जलती है।”
उसने अपने हाथों की अग्नि से सर्वर की परिधि को जलाया — पर बिना किसी ध्वंस के।
यह अग्नि निर्णय नहीं करती थी — यह भ्रम तोड़ती थी।
अंतिम युद्ध — कर्मविरोधी का संकल्प
नासिक की एक गुफा में अग्निवीर ने उस व्यक्ति का सामना किया — जो उम्र में बूढ़ा था, पर चेतना में चिरयुवा।
उसने अग्निवीर से कहा —
“अगर तू अपने भविष्य को नहीं देखना चाहता,
तो तू स्वयं से डरता है।”
अग्निवीर ने कहा —
“भविष्य देखना नहीं, बनाना होता है।
और मैं कोई भविष्य नहीं चाहता —
मुझे केवल आग चाहिए, जिसमें मैं हर झूठे नियति को जला सकूँ।”
कर्मविरोधी ने अपने समस्त सूत्रों का प्रयोग किया — एक डिजिटल चक्र उसके चारों ओर घूमा, जिसमें ‘संभावनाओं’ की हज़ार गणनाएँ थीं।
पर अग्निवीर ने केवल एक संकल्प लिया —
“मैं विकल्प हूँ।”
उसने ‘नियत-भस्म मंत्र’ का उच्चारण किया, और चक्र को अग्निवलय से घेर लिया।
कर्मविरोधी की गणनाएँ जल गईं, और वह स्वयम् उस अग्नि में बैठ गया — क्योंकि अब उसे ज्ञात हो गया था —
“कर्म निश्चित नहीं होता — वह अर्जित होता है।”
नवयुग का आरंभ
देशभर में अब बच्चे अपने भविष्य के लिए प्रश्न नहीं पूछते — वे केवल पूछते हैं:
“मैं क्या करूँ कि कुछ बदले?”
भाग्यबोध संस्थान की जगह एक नयी संस्था बनी — कर्मविकास संस्थान।
और हिमालय की उस चोटी पर एक नया प्रतीक उग आया —
एक खुला अग्निचक्र — जिसके नीचे लिखा था:
“तू जो कर रहा है — वही तेरा भविष्य है।”
समाप्त
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