प्रलयकोश का द्वार
वायुमंत एक अनजानी अंतरिक्षीय सुरंग में प्रवेश करता है, जिसे प्राचीन यंत्रणा ‘प्रलयकोश’ कहा जाता है — एक ऐसी प्रणाली जो ब्रह्मांडीय विनाश को संग्रहीत करती है ताकि कभी आवश्यकता पड़ने पर उसे दोबारा मुक्त किया जा सके। लेकिन अब वह द्वार खुलने वाला है, और वह शक्ति जो केवल ‘अंत’ के लिए बनी थी, धीरे-धीरे पृथ्वी की ओर बढ़ रही है। वायुमंत को अब युद्ध नहीं, पूरे ब्रह्मांड के अंत को टालना है — या फिर उसे उस प्रलय का हिस्सा बन जाना है।
आरंभ
प्रलयकोश का द्वार: वर्ष 3102। ‘तापस-9’ उपग्रह जो ब्रह्मांड की सीमाओं पर निगरानी रखता है, अचानक पृथ्वी की सभी प्रणालियों से कट गया। लेकिन उसके ऑटो-संवेदक ने एक अंतिम संकेत छोड़ा —
“द्वार जागृत हो गया है।”
भाअअंस की गहन खोजबीन में पाया गया कि यह संकेत एक ग्रेविटोनिक स्पाइरल से आया है — यानी ऐसा गुरुत्वाकर्षणीय भंवर जो किसी अदृश्य द्वार की ओर खिंचाव उत्पन्न करता है। और उसका केंद्र बिंदु था — ‘तिरोह’, ब्रह्मांड का सबसे स्थिर लेकिन रहस्यमयी खंड।
वहीं दूसरी ओर, अंतरिक्ष में मौजूद कुछ ग्रहों पर एक अजीब घटना हो रही थी — उनका समय रुका हुआ था। न मौसम बदल रहा था, न जीवित कोशिकाएँ बढ़ रही थीं।
भाअअंस ने इसे ‘स्थापन-प्रलय’ नाम दिया — एक ऐसी स्थिति जो ब्रह्मांड को धीरे-धीरे जड़ता में बदल देती है।
वायुमंत की भूमिका
वायुमंत, जो पिछले छह वर्षों से ‘मौन-अंतर’ में था — एक विशेष अभ्यास जिसमें योद्धा अपनी चेतना को ब्रह्मांड की अज्ञात लहरों से जोड़ता है — जैसे ही पृथ्वी की पुकार सुनता है, स्वयं प्रकट होता है।
उसकी आँखों में ब्रह्मांडीय चक्रों का बिंब झलक रहा था। उसका कवच अब वैदिक ऊर्जा और स्पेस-कंप्यूटिंग का अद्भुत संयोजन बन चुका था।
उसका नया यान — ‘विवेचक’ — गुरुत्वीय रेखाओं के भीतर यात्रा कर सकता था, बिना किसी गति या बल के।
वह बोला,
“यह कोई आकस्मिक संकट नहीं। यह उस प्राचीन चेतना की वापसी है जिसे केवल ‘प्रलय’ के समय ही उठना था। द्वार खुला है — अब मैं उस द्वार तक जाकर यह निर्णय करूंगा कि उसे पुनः बंद करना है या… उसे पार करना है।”
प्रलयकोश की खोज
वायुमंत जैसे ही ‘तिरोह’ के निकट पहुँचा, यान की सभी ऊर्जा प्रणाली निष्क्रिय हो गईं। फिर भी ‘विवेचक’ अपनी चेतना से संचालित होता रहा।
तिरोह एक ऊर्जा-निलय था — न प्रकाश, न अंधकार। केवल कंपन, और एक ध्वनि —
“वायुमंत, तू तैयार है क्या?”
जैसे ही वह केंद्र में पहुँचा, उसके सामने एक द्वार प्रकट हुआ — न भौतिक, न आभासी, बल्कि एक ऐसी चेतना से बना द्वार जो केवल उसी के लिए था।
वह द्वार था — प्रलयकोश, एक ब्रह्मांडीय सुरंग जो सभी ज्ञात सभ्यताओं की नष्ट की गई ऊर्जाओं को संग्रहीत किए हुए थी। वहाँ थीं टाइटन सभ्यता की भूली हुई आकाशीय शक्तियाँ, युक्तिका ग्रह के बायो-क्लस्टर हथियार, और वक्लथ ग्रह की परम चेतना — सब एक जगह, शांत, लेकिन जीवित।
प्रलय के रक्षक से भेंट
वायुमंत जैसे ही प्रवेश करता है, एक आकृति प्रकट होती है — प्राचीन रक्षक यन्त्रपुरुष, जिसका शरीर ब्रह्मांडीय धातुओं और पुरातन वैदिक सूत्रों से बना था।
वह बोला,
“यह प्रलयकोश कभी न खुलने के लिए था। परंतु पृथ्वी की अत्यधिक ऊर्जा-विकृति और चेतना-प्रसार ने इसे जाग्रत कर दिया है। अब या तो इसे स्थायी रूप से बंद किया जाए, या इसे उपयोग में लाया जाए।”
वायुमंत बोला —
“मैं इसे बंद करूंगा। लेकिन न बल से, न युक्ति से — बल्कि अनुभव से।”
अंतिम परीक्षा: आत्म-प्रलय
रक्षक ने कहा —
“तो तेरी परीक्षा केवल बाह्य नहीं, भीतरी होगी। तू देखेगा अपना वह रूप जो तब होता यदि तू शक्ति के मोह में बहता। यदि तू अपनी ही छवि को स्वीकार नहीं कर सका — तो तू इस द्वार को पार नहीं कर सकेगा।”
वायुमंत के समक्ष उसकी ही एक छाया प्रकट होती है — एक ऐसा वायुमंत जो भयंकर, अजेय, और निर्दयी है। जिसने ब्रह्मांड को नियंत्रण में लिया है, और संतुलन नहीं, प्रभुत्व चाहता है।
दोनों के बीच युद्ध हुआ — अस्त्र नहीं, विचारों का। एक बोला — “तू ब्रह्मांड को बचाने की बात करता है, पर हर बार किसी और को मिटा देता है।”
दूसरा बोला — “संतुलन की रक्षा कभी-कभी युद्ध से ही होती है, पर मोह से नहीं।”
युद्ध बहुत लंबा चला — चेतना की परतें खुलती रहीं। अंत में वायुमंत ने अपनी छाया को गले लगा लिया — और उसकी आँखों से आँसू निकले।
“मैं तुझसे अलग नहीं, परंतु मैं तुझसे बड़ा नहीं बनूँगा।”
छाया विलीन हो गई। द्वार स्वतः बंद हो गया।
वापसी और मौन उद्घोष
वायुमंत लौटा, पर इस बार वह बदला हुआ था। अब उसके शरीर पर कोई आभूषण नहीं था, कोई हथियार नहीं। केवल एक निशान — ‘ॐ’ — उसकी हथेली पर उभरा था।
भाअअंस ने पूछा —
“क्या द्वार बंद हो गया?”
उसने कहा —
“हाँ। परंतु उस द्वार को अब कुंजी नहीं चाहिए। वह तब खुलेगा जब हम स्वयं भीतर गिरने लगेंगे। यह निर्णय अब पृथ्वी का है।”
यह कहानी केवल अंतरिक्ष की नहीं, बल्कि चेतना की उस सीढ़ी की है जहाँ हर योद्धा को अपने भीतर उतरकर एक नया युद्ध जीतना होता है। वायुमंत ने इस बार शत्रु को नहीं हराया — उसने उसे समझा, स्वीकारा, और समाहित कर दिया। यही एक सच्चे अंतरिक्ष योद्धा की परिभाषा है।
समाप्त
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