भाव-नगर
भाव-नगर बादलों में था एक विचित्र शहर, जहाँ हर भावना थी कैद और बिखर। जब एक कृत्रिम शांति बनी विभीषिका, सूर्यकेतु ने जीवन का राग फिर से छेड़ा। सूर्यकेतु ने अपने प्रज्ञा-कवच के न्यूरल-विश्लेषक को सक्रिय किया। उसकी दृष्टि के सामने 'भाव-नगर' का विशाल, चमकदार शहर फैला हुआ था, जो पूरी तरह से हवा में तैरता था। यह एक ऐसा शहर था जो अपने नागरिकों की सामूहिक भावनाओं को नियंत्रित...